A Chartered Accountant by profession and a content writer by passion, I've dedicated my career to unraveling the complexities of GST. With a firm belief that learning is a lifelong journey, I've honed my skills in simplifying intricate legal jargon into easily understandable content. The satisfaction of transforming complex tax laws into relatable narratives is what drives me. When I'm not immersed in the world of GST, you can find me exploring new places or losing myself in a good book.
A Chartered Accountant by profession and a content writer by passion, I've dedicated my career to unraveling the complexities of GST. With a firm belief that learning is a lifelong journey, I've honed my skills in simplifying intricate legal jargon into easily understandable content. The satisfaction of transforming complex tax laws into relatable narratives is what drives me. When I'm not immersed in the world of GST, you can find me exploring new places or losing myself in a good book.
The Goods and Services Tax Network is constantly streamlining its GST portal and introducing new features to simplify compliance and auditing for taxpayers. The latest is the Invoice Management System (IMS), which will go live on 1st October 2024. It aims to help significantly manage the process of ITC claims. This article discusses the key features and benefits of the Invoice Management System and explains how it works. Stay with us. Latest Updates14th October 2024As per the latest GSTN advisory, IMS is made available on the GST portal since 14th October 2024. The first GSTR-2B with IMS actions would be the one generated for October 2024 that is generated on or after 14th November 2024.9th September 2024In the 54th GST Council Meeting, the Finance Minister acknowledged the enhancements to the existing GST return architecture.
Automobile tyres mostly use natural rubber as inputs. However, applicable GST rates on tyres vary significantly compared to other rubber-derived finished products, like gloves, latex threads, etc. In addition, GST rates on different tyres also differ widely. This article discusses the applicability of GST rates and HSN codes of various kinds of tyres. What is the GST on Tyres? Before the introduction of GST, tyre manufacturers, dealers and traders had to deal with multiple types of indirect taxes.Pre-GST, basic customs duty (BCD) for importing natural dry rubber was around 20%.Post-manufacturing, Original Equipment Manufacturers (OEMs) were required to pay Value Added Tax, Central Excise, etc. Dealers and traders paid state-specific taxes such as sales tax and octroi.GST unified all these different taxes with a single tax structure throughout India. For GST applicability purposes, tyre as a product segment is further categorised, with specific HSN for each category, Car (4-wheeler) tyres Non-motorised bicycle tyres Motorised 2-wheeler tyres Bus and commercial vehicle tyres Tyres used in agricultural-use vehicles Aviation tyres Retreaded second-hand or used or recycled tyres GST Rate and HSN Code for Tyres Different categories of tyres as finished products with different HSN codes are: Category HSN Applicable GST RateCar (4-wheeler) tyres 40111028% Non-motorised bicycle tyres 4011505%Motorised 2-wheeler tyres 40114028%Bus and commercial vehicle tyres 401120 28%Tyres used in agricultural-use vehicles 401161 12% Aviation tyres 401190 18%Retreaded second-hand or used or recycled tyres 401218%Input Tax Credit (ITC) for Tyres ITC is one of the significant pillars of GST.
Lately, most taxpayers have found themselves having an issue where their GSTR-2B isn't showing up on the GST portal. Leaving them scraping their heads for answers.Background to GSTR-2B Access in November 2024The Invoice Management System (IMS) was launched in October 2024. To ensure that the businesses claim the correct ITC, GSTR-2B is automatically generated depending on the actions taken by the recipient on the supplier's uploaded invoices. This process was expected to become smoother. The hope was to make the system more accessible and convenient for buyers and suppliers to match their invoices.
Managing a seamless movement of goods for your enterprise while also ensuring compliance regulations can be challenging for your teams. As a finance leader, you might see your teams face numerous hurdles, including paperwork delays and confusion about transportation rules. This is where the e-way Bill system under GST streamlines the movement of goods under India's GST framework. It ensures every consignment is properly documented, making the entire process transparent and hassle-free. But what exactly is an E-way Bill, and how does it work?EWay Bill or an Electronic Way bill is required for movement of goods under GST.
Goods and Services Tax Network (GSTN) लगातार अपने GST पोर्टल को सरल बना रहा है और नए फीचर्स जोड़ रहा है ताकि टैक्सपेयर्स के लिए कंप्लायंस और ऑडिटिंग आसान हो सके। लेटेस्ट फीचर है इनवॉयस मैनेजमेंट सिस्टम (IMS), जो 1 अक्टूबर 2024 से लाइव हो गया है। इसका मकसद ITC क्लेम के प्रोसेस को सही तरीके से मैनेज करना है। इस आर्टिकल में हम IMS की मुख्य विशेषताएं और फायदे समझेंगे और जानेंगे कि ये कैसे काम करता है। हमारे साथ बने रहें!लेटेस्ट अपडेट्स14 अक्टूबर 2024GSTN के लेटेस्ट एडवाइजरी के अनुसार, IMS को 14 अक्टूबर 2024 से GST पोर्टल पर उपलब्ध करा दिया गया है। पहला GSTR-2B जिसमें IMS के एक्शन होंगे, वह अक्टूबर 2024 का होगा और 14 नवंबर 2024 को जनरेट होगा।9 सितंबर 202454वीं GST काउंसिल मीटिंग में वित्त मंत्री ने मौजूदा GST रिटर्न सिस्टम में सुधारों की सराहना की। 3 सितंबर को जारी एडवाइजरी के अनुसार, इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) लेने के लिए रिसीपियंट टैक्सपेयर्स को इनवॉयस को ‘एक्सेप्ट’, ‘रिजेक्ट’ या ‘पेंडिंग’ रखने का ऑप्शन मिलेगा। अभी के लिए IMS ऑप्शनल है, लेकिन इससे गलतियाँ कम होंगी, रीकंसीलिएशन बेहतर होगी, और ITC मिसमैच की वजह से आने वाले नोटिस कम हो जाएंगे।GST के तहत इनवॉयस मैनेजमेंट सिस्टम (IMS) क्या है?इनवॉयस मैनेजमेंट सिस्टम, या IMS, GST पोर्टल में एक नया फीचर है, जो रिसीपियंट टैक्सपेयर्स को उनके सप्लायर्स द्वारा फाइल की गई इनवॉयस को एक्सेप्ट, रिजेक्ट या पेंडिंग में रखने का ऑप्शन देता है। अक्सर ITC क्लेम करते वक्त सप्लायर द्वारा दाखिल किये गये इनवॉयस और रिसीपियंट द्वारा भरी गई रिटर्न में मैचिंग की समस्या आती है। IMS के आने के बाद, रजिस्टर्ड रिसीपियंट अपने रेकॉर्ड्स को सप्लायर्स की भरी गई GSTR-1 में इनवॉयस से मैच कर पाएंगे। इससे रिसीपियंट का ITC क्लेम प्रोसेस और आसान हो जाएगा।IMS की शुरुआत कब होगी?IMS फीचर को 1 अक्टूबर 2024 से GST पोर्टल पर लागू कर दिया गया। पूरे वर्कफ्लो को समझने के लिए वीडियो देखें।https://youtu.be/fSUUuPbhkBYIMS कैसे काम करता है?GST कंप्लायंस में एक बड़ी समस्या होती है ITC लेना। IMS का मकसद इस प्रोसेस में आने वाली कई समस्याओं को हल करना है। जानिए ये कैसे काम करता है:सबसे पहले, सप्लायर्स अपनी GSTR-1 हर महीने की 11 तारीख तक या तो सबमिट और सेव करते हैं, या इनवॉयस को GSTR-1A के जरिए संशोधित (अमेंड) करते हैं।जैसे ही सप्लायर इनवॉयस सेव और सबमिट करता है, वह रिसीपियंट टैक्सपेयर के IMS डैशबोर्ड में और बाद में GSTR-2B में दिखाई देने लगते है।IMS डैशबोर्ड में सप्लायर का GSTIN, ट्रेड नाम, इनवॉयस नंबर, प्रकार, इत्यादि दिखता है।रिसीपियंट टैक्सपेयर्स को तीन विकल्प मिलते हैं: एक्सेप्ट, रिजेक्ट, या पेंडिंग। रिसीपींट टैक्सपेयर्स अपना एक्शन ले सकते हैं जब तक सप्लायर उनके GSTR1/IFF/1A के थ्रू इनवॉइसेस अपलोड कर रहा है, और ये टाइम लिमिट उनके मंथली GSTR-3B फाइल करने की लास्ट डेट, यानि महीने की 20th तक होती है।अगर रिसीपियंट एक्सेप्ट चुनता है, तो वह इनवॉयस उनके ऑटो-जनरेटेड ITC स्टेटमेंट या GSTR-2B का हिस्सा बन जाता है।अगर रिसीपियंट रिजेक्ट चुनता है, तो वह इनवॉयस ITC रिपोर्ट या GSTR-2B में शामिल नहीं होता।अगर रिसीपियंट इनवॉयस को पेंडिंग रखता है, तो यह उस महीने के GSTR-2B में काउंट नहीं होता और अगले महीने के लिए फॉरवर्ड हो जाता है।अगर रिसीपियंट किसी इनवॉयस पर कोई एक्शन नहीं लेता, तो सिस्टम इसे ‘माना गया एक्सेप्ट’ मानता है और अपने आप रिसीपियंट के GSTR-2B में जोड़ देता है।अगर सप्लायर किसी एक्सेप्टेड या पेंडिंग इनवॉयस में संशोधन करता है, तो संशोधित इनवॉयस पुराने इनवॉयस को रिप्लेस कर देता। है। रिसीपियंट को नई इनवॉयस पर एक्शन लेना होता है।सप्लायर्स GSTR-1A के जरिये जो भी संशोधन करते हैं, वो अगले महीने के लिए IMS के माध्यम से रिसीपियंट के GSTR-2B में अपडेट होती है।टैक्सपेयर्स भविष्य के महीनों में पेंडिंग इनवॉयस को एक तय सीमा तक क्लेम कर सकते हैं, जो CGST एक्ट, 2017 के सेक्शन 16(4) के तहत है।IMS के मुख्य फीचर्सकम्युनिकेशन की सुविधा: IMS एक कम्युनिकेशन फीचर है GST पोर्टल पर, जो इनवॉयस डॉक्यूमेंटेशन के जरिए सप्लायर्स और रिसीपियंट्स को एक डैशबोर्ड पर जोड़ता है।एक ही विंडो से GSTR-2B प्रोसेसिंग: कई सप्लायर्स के साथ डील करने वाले रिसीपियंट टैक्सपेयर्स सभी सप्लायर्स की इनवॉयस और ऑटो-जनरेटेड GSTR-2B को एक ही विंडो से मैनेज कर सकते हैं।अतिरिक्त कंप्लायंस का झंझट नहीं: IMS के आने से टैक्सपेयर्स पर कोई अतिरिक्त कंप्लायंस का बोझ नहीं पड़ेगा। अगर रिसीपियंट किसी इनवॉयस पर एक्शन नहीं लेता, तो ये अपने आप ‘deemed accepted’ हो जाएगा।इनवॉयस का सारांश: IMS डैशबोर्ड पर सभी इनवॉयस और उनके एक्शन्स का सारांश उपलब्ध होता है, जो मैनेजमेंट के फैसले और ऑडिटिंग के लिए फायदेमंद है।अब सप्लायर्स अपने सबमिट किए गए इनवॉइस को आसानी से अपडेट कर सकते हैं: ये नई कार्यक्षमता सप्लायर्स के लिए सेव इनवॉइस को भी और आसान से एडिट करना संभव बनाती है।इनवॉयस मैनेजमेंट सिस्टम (IMS) डैशबोर्डGSTN द्वारा जारी एडवाइजरी के अनुसार, इनवॉयस मैनेजमेंट सिस्टम डैशबोर्ड इस प्रकार दिखता हैटैक्सपेयर्स कैसे मैनेज करते हैं इनवॉयस और क्लेम करते हैं ITC?फिलहाल टैक्सपेयर्स को इनवॉयस मैनेज करने, रीकंसीलिएट करने और ITC क्लेम करने के लिए कई स्टेप्स फॉलो करने पड़ते हैं:सबसे पहले अपने खरीद रजिस्टर से रिकॉर्ड्स इकट्ठा करना।GSTR-2A डाउनलोड करना।GSTR-2B डाउनलोड करना।GSTR-2A और खरीद रजिस्टर को मैच करना।GSTR-1 को सेल्स रजिस्टर के साथ मिलाना।GSTR-3B और GSTR-1 का मिलान करना।GSTR-2B और GSTR-3B को मैच करना।IMS के फायदेIMS का इस्तेमाल शुरू होने पर ये छोटे और बड़े कारोबारों के लिए फायदेमंद होगा।सटीक ऑडिटिंग: IMS से ऑडिटर्स को हर इनवॉयस की पूरी तरह से जाँच करने में आसानी होगी।GSTR-3B में कम से कम गलतियाँ: ये सिस्टम सभी इनवॉयस का सारांश देता है, जिससे GSTR-3B फाइल करते वक्त कोई इनवॉयस छूटने का खतरा नहीं रहता।पेंडिंग इनवॉयस में कोई परेशानी नहीं: पेंडिंग इनवॉयस अगले टैक्स पीरियड में चली जाती है, जिससे GSTR-2B और 3B पर असर नहीं पड़ता।QRMP टैक्सपेयर्स के लिए उपलब्ध: IMS छोटे कारोबारियों और QRMP टैक्सपेयर्स के लिए भी उपलब्ध है, पर उनके लिए GSTR-2B हर तिमाही के लिए बनेगी।IMS की मुख्य बातें1 अक्टूबर 2024 से ये ऑनलाइन उपलब्ध होगया।ये हर इनवॉयस का अलग-अलग जांच करने और एक्शन लेने की प्रक्रिया को आसान बनाएगा।IMS किसी तरह का अतिरिक्त कंप्लायंस बोझ नहीं बढ़ाएगा।ये बड़े कंपनियों में ऑडिट क्षमता को बढ़ाएगा और छोटे बिजनेस के लिए ITC क्लेम करना आसान बनाएगा।.
India has pledged to work for sustainability and become a net zero country by 2070. Electric Vehicles are the key to reducing carbon emissions and fostering a cleaner environment. So, it is crucial to understand the GST on electric vehicles and their impact on customers. This blog discusses how GST on electric vehicles and government policies shape the EV market.Current GST Rate on Electric VehiclesThe GST rates on EV cars and charging stations were cut in 2019 to make them more affordable for mass adoption. The HSN code for EV cars is 870240.
From CCTVs and digital display boards to everyday laptops and desktops, Hard Disk Drives (HDDs) and Solid State Drives (SSDs) are essential for memory storage and computing. This article discusses the HSN code for hard disks and applicable GST rates for hard disks so that you can make informed decisions while purchasing for your business. Applicability of GST on Hard Disk Before GST was introduced in 2017, hard disk drives and other computer hardware items were used to attract a value added tax (VAT) along with customs duty, as HDDs and SSDs were mostly imported. In 2016, customs duty on internal HDDs was around 6.3%, while customs duty on external HDDs was 14.7%. Now, GST has streamlined these multiple layers of taxes and duties and replaced them with a single tax rate.Customers purchasing from a dealer/trader within India must pay 9% SGST and 9% CGST on HDDs and SSDs. IGST @ 18% is applicable on import for both internal and external hard disk drives and solid-state drives (SSD).HSN Code Classification and GST Rate for Hard Disk The Harmonised System of Nomenclature (HSN) is a globally accepted standard for classification, identification, tariff structuring, and naming of products and services in international trade.For example, the HSN code for Hard Disc Drive (HDD) is 8471702084 - Chapter on nuclear reactors, boilers, machinery and mechanical appliances and parts thereof8471 - Heading for automatic data processing machines, magnetic or optical readers, machines for transcribing, processing and storing coded data onto data media847170 - Subheading for ‘computer storage units’ 84717020 - Tariff item code for ‘storage units: hard disc drives.’GST Rate on Hard Disk Drive and other Computer Components HSN code HSN Description GST 847170204Tb Hard disk, external hard disk18% 84713010Personal computer 18% 8528Monitor 18% 847160 Printer 18% 85235100Non-volatile SSD 18% Read more: GST on Laptops: Applicability, HSN Code and GST Rate.
Compliance with GST rules and regulations has become a significant concern for businesses. Whether you are the CFO or finance manager of a large company with diversified business operations or a small business, you and your team might face similar problems while claiming input tax credits. However, we expect the future of GST compliance to improve with the Invoice Management System in the GST portal.This article discusses the GST Invoice Management System and how it is changing the worldview of GST compliance. Table of contents:What is the IMS (Invoice Management System)? Key benefits of IMS for GST compliance How does IMS reduce non-compliance risks?Impact of IMS on different business sizesThe future of GST compliance with IMSWhat is IMS (Invoice Management System)? Invoice Management System is a new feature for communicating invoices saved/filed by suppliers/vendors in their GSTR-1 to recipient users. It is a dashboard inside the GST portal. An invoice appears in the dashboard as soon as a vendor or supplier saves it. The IMS dashboard offers 2 broad functionalities - View Inward Supplies View Outward Supplies Inside the Inward Supplies section, the recipient gets to:Take action on the invoices saved by suppliers or vendors in their GSTR-1 for claiming ITCCheck the summary of all the inward invoices and the latest status of each invoice based on the actions taken Download inward invoice data in Excel formatReset action status for multiple invoices Generate GSTR-2BView the advisory or seek help if any clarification is required.Inside the Outward Supplies functionality, suppliers get to:Check actions taken by recipients (B2B customers) on the outward invoice they saved in their GSTR-1 Download outward invoice data in Excel file format. View the advisory or seek help if any clarification is required.Key Benefits of IMS for GST Compliance Improved accuracy in ITC claims Ensuring data accuracy while availing and claiming ITC in the portal has always been a significant problem for finance managers and CFOs. Usually, the accounts department must reconcile their records with invoices submitted by each supplier individually.
GSTN is scheduled to launch the new invoice management functionality IMS (Invoice Management System) on 1st October 2024 for ITC computation and claim process. This new feature will streamline many tasks for taxpayers, help reduce compliance errors, and change the future of GST compliance. It's natural for people to have questions. FAQs on IMS in GST answer all the queries from the industry leaders to our representatives about this eagerly expected featureBasics of the Invoice Management System (IMS) What is the Invoice Management System (IMS)?The Invoice Management System, or IMS, is a dashboard functionality within the GST portal that streamlines communication of invoices and CDNs saved/submitted/filed by suppliers. It facilitates recipients' checking of the status of invoices and CDNs and provides the option to accept, reject, or keep them pending for a period in a single window.When will IMS be made available to taxpayers?GSTN will launch the IMS facility on the 1st October portal. However, from 14th October 2024 onwards, users will be allowed to take action on invoices/CDNs. Which records will be available in IMS for taking action?The IMS dashboard will make available the following records related to the invoices saved or filed by the suppliers through GSTR-1/1A/IFF.B2B - InvoicesB2B - Invoices (Amendments)B2B - Debit NotesB2B - Debit Notes (Amendments)B2B - Credit Notes B2B - Credit Notes (Amendments)Eco [9(5)] InvoicesEco [9(5)] Invoices (Amendments)However, invoices and CDNs that are not eligible for ITC because of the POS rules or as per Section 16(4) of the CGST Act will not appear on the IMS dashboard.
From pallet-lifting mechanisation to a dashboard view of sourcing, procurement, warehousing, delivery, and return, supply chain management has come a long way in the last 100 years. Organisations are moving to supply chain networks in a natural progression to this journey of innovations and efficiency. This article discusses everything you must know about supply chain networks and supply chain network design. Stay with us.
What is a supply chain network?A supply chain network (SCN) is a connected combination of multiple essential supply chains covering different partners, including inbound logistics, internal processes of a focal company, and outbound logistics of a specific good or service. It's an evolutionary form of a conventional, linear supply chain that tries to track a product's journey across different tiers of the chain, from raw material-level form to last-mile customer-level delivery and return. A conventional supply chain covers only a part of that journey within the focal company's control. By focal company for a particular good or service, we mean a company:Has direct contact with customers. Has a significant stake in designing a product. Has control over the supply chain. Coca-Cola is an excellent example of a focal company. It works with multiple partners to supply its diverse products across various geographies, each with specialities, preferences, and market dynamics. Coca-Cola also controls the concentrates used in producing its beverages.Different bottling plants across different geographies work as Tier-1 suppliers as they are the closest partners of the focal company and also closest to the final product, i.e., packaged beverage, in the supply chain.